इगास उत्तराखंड का एक प्रमुख लोक पर्व है। यह दीपावली के 11 दिन बाद मनाया जाता है।
इस पर्व को कुमाऊं क्षेत्र में “बूढ़ी दिवाली” भी कहा जाता है।
अब वो कहानी जिसे ने भारत के सीमाए निर्धारत के और िगस के सुरवात के. के कहनिया
मान्यता है कि जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे, तो उनका समाचार पहाड़ों में 11 दिन बाद पहुंचा था। इसलिए, पहाड़ों में दिवाली 11 दिन बाद मनाई जाती है।
परन्तु जो सब से जायदा परचलित और तर्कपूर्ण कहानी है वो है वीर माधोसिंह भंडारी के |
कौन है माधोसिंह भंडारी ?
माधो सिंह भंडारी, जिन्हें ‘माधो सिंह मलेथा’ भी कहा जाता है, गढ़वाल के महान योद्धा, सेनापति और कुशल इंजीनियर थे जो आज से लगभग 400 साल पहले पहाड़ का सीना चीरकर नदी का पानी अपने गांव लेकर आये थे।
गांव में नहर लाने के उनके प्रयास की यह कहानी भी काफी हद तक दशरथ मांझी से मिलती जुलती है।
माधोसिंह भंडारी गढ़वाल की कथाओं का अहम अंग रहे हैं।
अब वो कहानी जिसे ने भारत के सीमाए निर्धारत के इगास और के सुरवात के |
16 वीं शताब्दी में, उत्तराखंड (तब गढ़वाल और कुमाऊं के रूप में जाना जाता था) और तिब्बत के बीच कई युद्ध हुए।
इन युद्धों का कारण उत्तराखंड की सीमाओं को सुरक्षित करना और तिब्बत के आक्रमणों से बचाव करना था।
1550: तिब्बत का आक्रमण
1550 में, कमांडर दुगलत मिर्जा के नेतृत्व में तिब्बती सेना ने उत्तराखंड पर आक्रमण किया, महत्वपूर्ण व्यापार मार्गों और रणनीतिक दर्रों को निशाना बनाया।
यह आक्रमण उत्तराखंड की संप्रभुता और उसकी सीमाओं पर नियंत्रण के लिए एक बड़ा खतरा था।
उत्तराखंड के राजा, महीपत शाह, ने तिब्बती आक्रमण का कड़ा विरोध किया।माधोसिंह भंडारी को आदेश दिया |
एक शक्तिशाली इकट्ठा करने के एक ताकतवर सेना बनाओ और तिब्बत पर हमला करो,और कहा दिवाली से पहले वापस आना|
1551 में, उत्तराखंड और तिब्बत की सेनाओं के बीच एक बड़ा युद्ध हुआ।
इस युद्ध में उत्तराखंड की सेना ने तिब्बती सेना को पराजित किया।और अपना झंडा अपना लगा दिया |
परन्तु यहाँ खबर श्रीनगर नहीं पहुंचे |
राज्य के सभी राजा और प्रजा को लगा कि वे युद्ध में हार गए या अवलाच में मर गए |
तब राजा ने आदेश दिया कि हम दीवाली नहीं मनाएँगे। राज्य के विभिन्न भागों के अनेक वीर सेना में थे।
पूरा राज्य दुःखी था।
दिवाली के चार दिन बाद माधोसिंह भंडारी का दूत राजा के पास पागम लाता है कि युद्ध मे उनकी जीत हो गई हैं |
इस खबर के बाद पूरा राज्य खुशी से झूम उठा । राजा ने कहा कि जिस दिन सेना राजधानी में प्रवेश करेगी उस दिन हम दीवाली मनाएंगे
सेना दिवाली के 11 दिन बाद एकादशी को राजधानी पहुंचती है, उस दिन वे दिवाली या इगास बग्वाल मनाते हैं |
आज के समय इगास
इगास के दिन सुबह-सुबह लोग नहा-धोकर नए कपड़े पहनते हैं। फिर, घरों में मीठे पकवान बनाए जाते हैं।
शाम को स्थानीय देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की जाती है।
इसके बाद, लोग भैला नामक एक प्रकार की मशाल जलाकर उसे घुमाते हैं।
ढोल-नगाड़ों की धुन पर लोग आग के चारों ओर नृत्य करते हैं।
इगास के कुछ अन्य रीति-रिवाज
- इगास के दिन लोग अपने घरों को साफ-सुथरा करते हैं और नए सामान खरीदते हैं।
- इगास के दिन लोग अपने खेतों में खड़ी फसलों को देखने जाते हैं।
- इगास के दिन लोग गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करते हैं।
इगास उत्तराखंड के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व पहाड़ों की समृद्ध संस्कृति और लोकजीवन को दर्शाता है।