
ताइवान के राष्ट्रपति चुनाव में एक बार फिर डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) का जलवा बिखरा। सत्तारूढ़ पार्टी के उम्मीदवार त्साई इन-वेन ने चीन समर्थित कोकुओमितांग (केएमटी) पार्टी के उम्मीदवार हान कुओ-यू को हराकर लगातार तीसरी बार राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभालेंगी। यह जीत ताइवान की जनता द्वारा चीन के बढ़ते दबाव के खिलाफ मजबूत जवाब के रूप में देखी जा रही है।
पिछले चुनावों की तुलना में इस बार मतदान प्रतिशत भी अधिक रहा, जो बताता है कि लोगों ने इस चुनाव को बेहद महत्वपूर्ण समझा. त्साई इन-वेन को लगभग 57% वोट मिले, जबकि हान कुओ-यू को 38% वोट मिले. चुनाव परिणाम आते ही ताइवान की राजधानी ताइपे में जश्न का माहौल छा गया। समर्थकों ने डीपीपी पार्टी के झंडे लहराए और नारे लगाए.
इस जीत के तुरंत बाद त्साई इन-वेन ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा, “यह जीत ताइवान के लोकतंत्र और हमारी स्वतंत्रता के लिए एक जीत है। जनता ने चीन के दबाव के खिलाफ साफ संदेश दिया है कि हम अपने भविष्य का खुद निर्धारण करेंगे।” उन्होंने कहा, “हम चीन के साथ शांतिपूर्ण संबंध बनाए रखने का प्रयास जारी रखेंगे, लेकिन किसी भी प्रकार के दबाव या एकीकरण के प्रयासों का दृढ़ता से विरोध करेंगे।”
चीन, जो ताइवान को अपना एक टुकड़ा मानता है, इस चुनाव परिणाम से नाराज होगा। पिछले कुछ समय में चीन ने ताइवान के आसपास सैन्य गतिविधियां बढ़ा दी हैं और आर्थिक दबाव डालने की भी कोशिश की है। हालांकि, ऐसा लगता है कि चीन की धमकियों का उल्टा असर हुआ है और ताइवान की जनता ने सत्ताधारी पार्टी को फिर से जिताकर चीन के खिलाफ एकजुटता का संदेश दिया है।
विश्लेषकों का कहना है कि त्साई इन-वेन का तीसरा कार्यकाल ताइवान-चीन संबंधों में आगे चलकर और तनाव पैदा कर सकता है. हालांकि, यह भी तय है कि अब चीन को ताइवान को अपने कब्जे में लेने के मंसूबों को अंजाम देना और भी मुश्किल हो जाएगा।
ताइवान के इस चुनाव ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि लोकतंत्र की जड़ें कितनी मजबूत हो सकती हैं, खासकर जब जनता अपने भविष्य के लिए एकजुट होकर फैसला लेती है। इवान और चीन के बीच रिश्तों पर दुनिया की नजरें अब और भी टकटकी लगाकर रहेंगी। आने वाले समय में क्या होता है, ये देखना बाकी है, लेकिन फिलहाल ताइवान की जनता ने अपनी आवाज बुलंद कर दी है और दुनिया को दिखा दिया है कि वे अपने हक के लिए खड़े रहेंगे।