दिल्ली के दो मशहूर रेस्टोरेंट, मोती महल और दरियागंज, इस लोकप्रिय भारतीय व्यंजन बटर चिकन के आविष्कार पर कानूनी लड़ाई में फंस गए हैं। दोनों रेस्टोरेंट का दावा है कि उन्होंने 1950 के दशक में इसकी रेसिपी बनाई थी और अब वे ट्रेडमार्क उल्लंघन के लिए एक-दूसरे पर मुकदमा कर रहे हैं. यह मामला दिल्ली हाई कोर्ट में चल रहा है।
मामले की जड़
मोती महल का दावा है कि उनके पूर्ववर्ती कुंदल लाल गुजराल ने बटर चिकन का आविष्कार किया था। उनका कहना है कि गुजराल तंदूरी चिकन के सूखने से परेशान थे और उन्होंने इसे फिर से रसदार बनाने के लिए एक सॉस बनाया, जो बाद में बटर चिकन बन गया। मोती महल का यह भी दावा है कि इस व्यंजन ने श्री गुजराल की पाक-कला की प्रतिभा के कारण दुनिया भर में भारतीय व्यंजनों में अपना स्थान बनाया है।
दूसरी ओर, दरियागंज का दावा है कि कुंदल लाल जगगी ने बटर चिकन और दाल मखनी जैसी प्रसिद्ध व्यंजनों का आविष्कार किया था। वे मोती महल के मुकदमे को “निराधार” बताते हुए खारिज करते हैं।
कानूनी लड़ाई का प्रभाव
यह कानूनी लड़ाई न केवल दोनों रेस्टोरेंट के लिए बल्कि बटर चिकन के प्रशंसकों के लिए भी एक बड़ा झटका है. कई लोग सोशल मीडिया पर इस मामले पर अपनी राय दे रहे हैं, कुछ मोती महल का समर्थन कर रहे हैं तो कुछ दरियागंज का.
हालांकि, इस मामले का नतीजा अभी तक सामने नहीं आया है, लेकिन यह निश्चित है कि इस विवाद से दोनों रेस्टोरेंट की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है। साथ ही, यह मामला यह भी उजागर करता है कि भारत में खाद्य संस्कृति और व्यंजनों के इतिहास से जुड़े विवाद कितने जटिल हो सकते हैं।
आगे की कार्रवाई
दिल्ली हाई कोर्ट मामले की सुनवाई कर रहा है और अभी तक कोई फैसला नहीं आया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि अदालत इस मामले में कैसा फैसला सुनाती है और बटर चिकन के असली आविष्कार का ताज किस रेस्टोरेंट को मिलता है।
हमें उम्मीद है कि यह लेख आपको दिल्ली हाई कोर्ट में चल रहे बटर चिकन के आविष्कार के विवाद के बारे में जानकारी प्रदान करने में सहायक रहा होगा। इस मामले के बारे में किसी भी अपडेट के लिए हमारे साथ बने रहें।
अतिरिक्त जानकारी:
- इस मामले में दोनों रेस्टोरेंट के वकीलों ने मीडिया के सामने बयान दिए हैं, जिनमें उन्होंने अपने-अपने पक्ष को मजबूत करने की कोशिश की है।
- सोशल मीडिया पर इस मामले पर काफी चर्चा हो रही है, कई लोग मीम्स और चुटकुले भी बना रहे हैं।
- हालांकि यह मामला हल्का-फुल्का लग सकता है, लेकिन यह भारतीय खाद्य संस्कृति के इतिहास और विरासत से जुड़ा हुआ है, इसलिए इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।