कृत्रिम बुद्धि: आश का हथियार, पर चलाना ज़रूरी है सीख

कृत्रिम बुद्धि, ये शब्द सुनते ही ज़हन में अलबेले रोबोट और भविष्य की झलक उभरने लगती है। मगर ये महज कल्पना नहीं, हकीकत है। ये एक चमचमाता हथियार है, जो ज़िंदगी के कई मोर्चों पर जीत दिला सकता है। पर ये ध्यान रखना ज़रूरी है कि ये हथियार सिर्फ उसी के हाथों में कमाल दिखाता है, जो इसे चलाना जानता है।

सोचिए ज़रा, बीमारियों का पता लगाना कितना मुश्किल होता था। अब AI डॉक्टर की तरह X-Ray पढकर बीमारी का पता लगा लेता है। खेतों में फसल का रोग पहचानना किसानों के लिए सिरदर्द था। अब कृत्रिम बुद्धि पत्तियों पर नज़र डालकर ही बता देती है कि फसल को बचाने के लिए क्या करना है। ये तो महज कुछ उदाहरण हैं, जहाँ AI इंसान की ज़िंदगी को आसान बना रहा है।

पर हर हथियार की तरह AI के भी अपने खतरे हैं। अगर अनपढ़ हाथों में पड़ गया, तो नुकसान ज़रूर कर सकता है। सोचिए अगर AI भर्ती प्रक्रिया का निर्णय लेने लगे और बिना अनुभव के सिर्फ डेटा को आधार बनाए नौकरी दे, तो योग्य उम्मीदवारों का क्या होगा? या अगर न्याय प्रणाली में जज की जगह AI बैठे, तो क्या वो इंसान के जज्बात और परिस्थितियों को समझ पाएगा?

इसलिए ये ज़रूरी है कि AI के विकास के साथ-साथ इसे चलाने, इस्तेमाल करने की कला भी सीखी जाए। हर क्षेत्र में विशेषज्ञों को AI की जानकारी दी जाए, ताकि वो इसे अपने काम में सही ढंग से इस्तेमाल कर सकें। तभी ये हथियार ज़िंदगी को और बेहतर बनाएगा, न कि बिगाड़ेगा।

इसके अलावा ये भी ध्यान रखना ज़रूरी है कि AI सिर्फ एक उपकरण है, वो इंसान नहीं बन सकता। इंसान की नैतिकता, रचनात्मकता, संवेदनशीलता ये वो खूबियां हैं, जिन्हें AI कभी हासिल नहीं कर सकता। इसलिए AI को बस एक सहायक के रूप में देखना चाहिए, ज़िंदगी का फैसला लेने वाला नहीं।

अंत में यही कहेंगे कि कृत्रिम बुद्धि एक आश का हथियार है, पर इसे चलाना सीखना ज़रूरी है। तभी ये हमारे लिए उन्नति का रास्ता बनेगा, न कि पतन का।

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