
देहरादून, 29 जनवरी 2024: पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने टिहरी बांध विस्थापितों को भूमिधरी अधिकार देने की मांग को लेकर 1 फरवरी, 2024 को दोपहर 12 बजे गांधी पार्क देहरादून में 1 घंटे का मौन व्रत रखने की घोषणा की है।
श्री रावत ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि टिहरी बांध राष्ट्र की प्रगति और भारत-रूस मैत्री का जीवांत स्तंभ है, लेकिन इसके निर्माण के लिए विस्थापित हुए लोगों को आज भी कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि हरिद्वार के पथरी क्षेत्र में बसे टिहरी विस्थापितों को 42 वर्षों बाद भी भूमिधरी अधिकार नहीं मिला है। इन लोगों को बैंकों से ऋण लेने, अपने घरों का स्वामित्व प्राप्त करने और सामान्य ग्राम वासी को प्राप्त हक-हकूक का लाभ उठाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
श्री रावत ने कहा कि 2016 में तत्कालीन सरकार ने विस्थापितों को भूमिधरी अधिकार देने के निर्देश जारी किए थे, लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद यह प्रक्रिया ठंडे बस्ते में डाल दी गई।
उन्होंने कहा कि गैरसैंण में हुए विधानसभा सत्र में इस मामले को उठाए जाने पर सरकार ने सकारात्मक कदम उठाने का आश्वासन दिया था, लेकिन 8 माह बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई है।
श्री रावत ने मांग की है कि:
- माननीय मुख्यमंत्री जी मंत्रिमंडल की बैठक बुलाकर इस प्रकरण का सकारात्मक निस्तारण करें।
- वन विभाग द्वारा करवाए जा रहे सर्वेक्षण व उसके निष्कर्षों को वापस लिया जाए।
- विस्थापितों से किए गए वादों के पुनर्विक्षण हेतु मंत्री महोदयान के साथ टीएचडीसी एवं पुनर्वास निदेशक की एक संयुक्त कमेटी गठित हो।
उन्होंने कहा कि यदि उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया तो वह 1 फरवरी को गांधी पार्क में मौन व्रत रखेंगे और संबंधितों के साथ धरने पर बैठेंगे।
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पृष्ठभूमि
टिहरी बांध भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित एक बहुउद्देशीय बांध है। इसका निर्माण 1978 में शुरू हुआ और 2006 में पूरा हुआ। इस बांध के निर्माण के लिए लगभग 100,000 लोगों को विस्थापित किया गया था।
विस्थापितों को पुनर्वासित किया गया और उन्हें भूमि का आवंटन किया गया। हालांकि, उन्हें भूमिधरी अधिकार नहीं दिया गया है। इसका मतलब है कि वे अपनी भूमि को बेच या गिरवी नहीं रख सकते हैं।
टिहरी बांध विस्थापित लंबे समय से भूमिधरी अधिकार की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कई बार प्रदर्शन और धरना आयोजित किया है।
निष्कर्ष
टिहरी बांध विस्थापितों की भूमिधरी अधिकार की मांग जायज है। सरकार को इस मामले पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और विस्थापितों को उनके अधिकार प्रदान करने चाहिए।