
केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा झटका दिया है दरअसल इलेक्टरल बॉन्ड स्कीम यानी चुनावी बांड व्यवस्था को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक बताया है । चीफ जस्टिस डिवाई चंद्रचुड़.की अध्यक्षता वाली पीठ ने आज इलेक्टरल बॉन्ड स्कीम पर फैसला सुनते हुए कहा.. यह सूचना के अधिकारों का उल्लंघन करती है साथ ही आर्टिकल 19 (1 )(A) नागरिक के मौलिक अधिकार का उल्लंघन भी करती है| , सुप्रीम कोर्ट ने एस.बी.आई को चुनावी बांड जारी करने पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने के आदेश दिए हैं। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई और चुनाव आयोग से 2019 से अब तक जितने भी दानदाताओं ने चुनावी बांड खरीदे हैं और जिस राजनीतिक दल ने चुनावी बांड से फंडिंग प्राप्त की है उसकी जानकारी 6 मार्च 2024 तक जारी करने के आदेश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में आयकर अधिनियम और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम संशोधन को खारिज कर दिया है जिसके माध्यम से गुमनामी की व्यवस्था लाया गया था चुनावी बांड व्यवस्था के अंदर ।
क्या है चुनावी बांड स्कीम
दरअसल केंद्र सरकार ने 2017 में इलेक्ट्रोल बंद स्कीम की घोषणा की थी और 2018 में इसको लागू किया था। चुनावी बांड व्यवस्था एक प्रक्रिया है जिसके तहत राजनीतिक दल किसी व्यक्ति या कंपनियों से या संस्थान से चंदा लेते हैं। इस स्कीम के तहत कोई व्यक्ति ,कंपनी या संस्थान अगर किसी राजनीतिक दल को चंदा देना चाहता है तो वह इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकता है। सरकार ने एसबीआई को 1 हजार, 10 हजार,10 लाखऔर 1 करोड़ के बांड जारी करने के अधिकार दिए हैं। इस स्कीम में डिजिटल और चेक के माध्यम से ही बांड खरीदे जाते थे। वही फंड लेने वाली राजनीतिक दल को भी अपने दल का औपचारिक खाते की जानकारी स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया और चुनाव आयोग से साझा करनी होती है । साथी फंड प्राप्त करना वाले राजनीतिक दल को चुनाव आयोग को विवरण देना होता है कि कहां उसने धनराशि का इस्तेमाल किया है।
पहले क्या व्यवस्था थी।
दरअसल पहले राजनीतिक दल चंद कैश के माध्यम से लेते थे। जिसमें पारदर्शिता का अभाव रहता था जिसके चलते सरकार यह बिल लेकर आई थी