कांग्रेस ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए अपने सहयोगी दलों के साथ सीट-समझौता तय कर लिया है, लेकिन पार्टी के भीतर अभी भी कई तरह की समस्याएं बनी हुई हैं। यह समझौता कांग्रेस के लिए राहत की खबर है, लेकिन पार्टी के अंदरूनी कलह से चुनाव में कितना असर पड़ेगा, यह देखना बाकी है।

सीट-समझौता हुआ, मगर मुश्किलें बरकरार: द्रमुक के साथ तमिलनाडु में सीट-समझौता तय होने के बाद कांग्रेस को बड़ी राहत मिली है। इसके अलावा, महाराष्ट्र, बिहार और झारखंड में भी क्षेत्रीय दलों से समझौता हो चुका है। लेकिन पार्टी के अंदरूनी संघर्ष चिंता का विषय बने हुए हैं।
नेताओं में असंतोष: कई राज्यों में पार्टी के नेता सीट-बंटवारे से खुश नहीं हैं। कुछ नेताओं को टिकट नहीं मिलने का खतरा है, तो कुछ नेताओं को कम सीटें मिलने से नाराजगी है। यह असंतोष चुनाव अभियान को कमजोर कर सकता है।
गुटबाजी का असर: पार्टी के भीतर गुटबाजी का असर भी चुनाव में नजर आ सकता है। अलग-अलग गुटों के नेता एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव प्रचार कर सकते हैं। इससे पार्टी को नुकसान हो सकता है।
विपक्षी एकजुटता की चुनौती: कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती भाजपा और उसके सहयोगी दलों की एकजुटता है। भाजपा लंबे समय से विपक्षी दलों को आपस में लड़वाकर फायदा उठाती रही है। कांग्रेस को यह सुनिश्चित करना होगा कि पार्टी के भीतर का संघर्ष विपक्षी एकजुटता को कमजोर न करे।
क्या है आगे का रास्ता?: कांग्रेस को अपने नेताओं को मनाने और पार्टी के भीतर एकजुटता बनाने की जरूरत है। साथ ही, पार्टी को जनता के बीच प्रभावी ढंग से अपनी बात रखनी होगी। तभी वह आगामी लोकसभा चुनाव में सफलता हासिल कर सकती है।
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