भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पतंजलि आयुर्वेद को ‘भ्रामक’ विज्ञापनों के लिए अवमानना का नोटिस जारी किया है। अदालत ने बाबा रामदेव और पतंजलि की इन विज्ञापनों की कड़ी आलोचना की है, जो जनता में गलत जानकारी फैलाते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को 'भ्रामक' विज्ञापनों पर अवमानना का नोटिस जारी किया

न्यायालय ने पतंजलि और आचार्य बालकृष्ण को अवमानना का नोटिस जारी करते हुए कहा, “आज मैं वास्तव में सख्त आदेश पारित करने जा रहा हूं।”

यह मामला पतंजलि द्वारा कोरोनिल नामक दवाई के उस प्रचार से जुड़ा हुआ है जिसमें दावा किया गया था कि यह कोविड -19 का इलाज कर सकती है। अदालत ने ऐसे दावों को आधारहीन बताया है और इसे उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ माना है।

सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि भ्रामक विज्ञापन बर्दाश्त नहीं किए जा सकते। अदालत ने पतंजलि को इन विज्ञापनों पर अपना रुख स्पष्ट करने और ऐसे दावों का समर्थन करने वाले शोध और साक्ष्य प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

अवमानना का नोटिस क्या होता है?

अवमानना का नोटिस अदालत के आदेश या निर्देशों की जानबूझकर अवहेलना करने पर जारी किया जाता है। इसमें गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जिसमें जुर्माना या कारावास भी शामिल है।

पतंजलि का संभावित बचाव

पतंजलि इस नोटिस का जवाब देते हुए यह दावा कर सकती है कि उनके विज्ञापन भ्रामक नहीं थे और आयुर्वेदिक दवाओं के पारंपरिक ज्ञान पर आधारित थे। हालांकि, उन्हें अदालत में अपने दावों का समर्थन करने के लिए पर्याप्त सबूत देने होंगे।

यह मामला भारतीय विज्ञापन उद्योग के लिए संभावित रूप से व्यापक प्रभाव डालता है, खासकर स्वास्थ्य से जुड़े उत्पादों के प्रचार के संदर्भ में।

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