कोचिंग संस्थान आज के समय में शिक्षा का एक समानांतर उद्योग बन चुके हैं। सरकारी नौकरी पाने से लेकर मेडिकल या इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं को क्रैक करने तक, हर क्षेत्र में कोचिंग की मांग बढ़ती जा रही है। लेकिन क्या यह वाकई सफलता का सुनहरा रास्ता है, या फिर सिर्फ सपनों को बेचने का धंधा?

कोचिंग संस्थान: सपनों का व्यापार या सफलता का रास्ता?

आजकल कोचिंग संस्थान चमकदार ब्रोशरों, प्रेरक विज्ञापनों और सफलता की गारंटी जैसे वादों से युवाओं को आकर्षित करते हैं। वे अभिभावकों की महत्वाकांक्षाओं और बच्चों के भविष्य की चिंताओं को भुनाते हैं। मोटी फीस लेकर वे कोचिंग का ऐसा जाल बुनते हैं कि अभिभावक इन संस्थानों को सफलता की सीढ़ी समझने लगते हैं।

लेकिन क्या ये वादे हमेशा पूरे होते हैं? अक्सर देखने में आता है कि कोचिंग संस्थान घंटों तक चलने वाली कक्षाओं, ढेर सारी स्टडी मटेरियल और थका देने वाले टेस्टों के जरिए छात्रों पर सिर्फ दबाव डालते हैं। रटने और परीक्षा पास करने पर ही जोर दिया जाता है, जबकि रचनात्मक सोच और गहन ज्ञान को नजरअंदाज कर दिया जाता है।

इसके अलावा, कोचिंग की ऊंची फीस कई प्रतिभाशाली छात्रों को इस दौड़ से बाहर कर देती है। शिक्षा एक समान अवसर का अधिकार है, मगर कोचिंग संस्थान इसे आर्थिक रूप से सक्षम छात्रों का विशेषाधिकार बना रहे हैं।

हालांकि, यह कहना भी गलत होगा कि कोचिंग संस्थान पूरी तरह से बेकार हैं। कुछ संस्थान वाकई में अनुभवी शिक्षकों और व्यवस्थित पाठ्यक्रम के जरिए छात्रों का मार्गदर्शन करते हैं। वे कठिन परीक्षाओं की तैयारी में छात्रों की मदद कर सकते हैं और उन्हें सही दिशा दे सकते हैं।

तो फिर सवाल उठता है कि आखिर रास्ता क्या है?

सबसे जरूरी है कि कोचिंग संस्थानों को सफलता का मंत्र न समझा जाए। बल्कि, उन्हें सिर्फ एक सहायक उपकरण के रूप में देखा जाना चाहिए। अच्छी स्कूली शिक्षा, लगनशीलता और सही मार्गदर्शन ही सफलता की असली कुंजी है। अभिभावकों को चाहिए कि वे कोचिंग पर आँख मूंदकर भरोसा करने की बजाय अपने बच्चों की रुचि और क्षमता को पहचाने।

शिक्षा का व्यापारीकरण रोके जाने की भी जरूरत है। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हर किसी तक पहुंचे, ताकि सपने बेचने की बजाय उन्हें सच करने का माहौल तैयार हो सके।

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