भारत के मुख्य न्यायाधीश ने एक संवेदनशील मामले में सरकार से जवाब मांगा है. यह मामला शिशुओं पर सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका से जुड़ा है. इस सर्जरी में किसी व्यक्ति के शरीर को उसके लिंग पहचान से मिलाने के लिए चिकित्सकीय हस्तक्षेप किया जाता है.
मुद्दा इसलिए उलझा हुआ है क्योंकि शिशु नाबालिग होते हैं और खुद कोई फैसला लेने में असमर्थ होते हैं. ऐसे में उनके माता-पिता या अभिभावकों द्वारा कराए जाने वाली इस तरह की सर्जरी पर रोक लगनी चाहिए या नहीं, इस पर बहस छिड़ी हुई है.
सुप्रीम कोर्ट के इस कदम को देखते हुए माना जा रहा है कि कोर्ट इस जटिल विषय पर जल्द ही कोई अहम फैसला सुना सकता है. पूरे देश की निगाहें इस मामले पर टिकी हुई हैं.
आपको बता दें कि सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी करा पाने के लिए व्यक्ति को वयस्क होना और यह स्पष्ट करना होता है कि वह अपनी लिंग पहचान के अनुसार ही जीवन जीना चाहता है. हालांकि, कुछ मामलों में जन्म के समय शिशु के जननांग अस्पष्ट होते हैं जिन्हें इंटरसेक्स के तौर पर जाना जाता है. ऐसे मामलों में माता-पिता अक्सर सर्जरी करवाने का फैसला लेते हैं ताकि बच्चे को लिंग पहचान दे सकें.
यह मामला इसलिए भी पेचीदा है क्योंकि इसमें नाबालिग के अधिकारों और माता-पिता के फैसले लेने के अधिकार को लेकर सवाल खड़े होते हैं. साथ ही, यह भी एक महत्वपूर्ण सवाल है कि क्या शिशु पर इस तरह की सर्जरी का दीर्घकालिक शारीरिक और मानसिक प्रभाव पड़ सकता है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से इस बहस को दिशा मिलने की उम्मीद है. कोर्ट सरकार के जवाब के बाद इस मामले में सुनवाई करेगा और फिर अंतिम फैसला सुनाएगा.