ट्रायल में हस्तक्षेप नहीं करेगा हाई कोर्ट, स्वतंत्र जांच एजेंसी की मांग खारिज

नई दिल्ली, 8 जनवरी 2024: राष्ट्रवादी विचारक नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के मुकदमे की निगरानी बॉम्बे हाई कोर्ट से हटाने की मांग को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। इस फैसले से देश में न्यायिक निगरानी की भूमिका और प्रासंगिकता पर एक बार फिर से बहस छिड़ गई है।

दाभोलकर की बेटी मुक्ता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि हाई कोर्ट द्वारा की जा रही निगरानी पर्याप्त नहीं है और मामले की उचित जांच के लिए स्वतंत्र जांच एजेंसी (SIT) के गठन की जरूरत है। उन्होंने हाई कोर्ट की निगरानी को यह कहते हुए कमजोर बताया कि पहले ही आरोप पत्र दाखिल हो चुका है और ट्रायल शुरू हो चुका है।

सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि मुक्ता की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि हाई कोर्ट द्वारा की जा रही निगरानी पर्याप्त है और ट्रायल सुचारू रूप से चल रहा है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि हाई कोर्ट हस्तक्षेप करते हुए ट्रायल के नियमित कामकाज में बाधा नहीं डाल सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से कानूनी विशेषज्ञों में अलग-अलग राय सामने आ रही है। कुछ विशेषज्ञों का मानना ​​है कि कोर्ट का फैसला सही है और इससे जांच प्रक्रिया में बाधा नहीं आएगी। उनका कहना है कि अब ट्रायल को स्वतंत्र रूप से चलने देना चाहिए और किसी बाहरी हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।

लेकिन अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि दाभोलकर हत्याकांड जैसा हाई-प्रोफाइल मामला है और इसमें न्यायिक निगरानी जरूरी है। उनका तर्क है कि इस मामले में संभावित राजनीतिक दबाव और गवाहों को धमकाने का खतरा अधिक होता है, इसलिए निगरानी से जांच की निष्पक्षता सुनिश्चित होती है।

यह बहस चाहे जो हो, सुप्रीम कोर्ट का फैसला निश्चित रूप से न्यायिक निगरानी की परंपरा पर पुनर्विचार का अवसर देता है। ऐसे संवेदनशील मामलों में न्यायिक निगरानी कितनी आवश्यक है और कब यह हस्तक्षेप बन जाती है, यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब अभी खोजना बाकी है।

इस लेख में कुछ प्रमुख बिंदु शामिल हैं:

  • सुप्रीम कोर्ट ने दाभोलकर हत्याकांड की निगरानी की मांग को खारिज कर दिया।
  • इस फैसले से न्यायिक निगरानी पर बहस छिड़ गई है।
  • कुछ विशेषज्ञ फैसले का समर्थन करते हैं, जबकि अन्य न्यायिक निगरानी पर जोर देते हैं।
  • सुप्रीम कोर्ट का फैसला न्यायिक निगरानी के बारे में पुनर्विचार का अवसर प्रदान करता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here