नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की प्रांतीय सशस्त्र पुलिस बल (पीएसी) को उस व्यक्ति को सिपाही के पद पर नियुक्त करने का आदेश दिया है, जिसका चयन 2005 में अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले की जानकारी छिपाने के आरोप में रद्द कर दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब उस व्यक्ति ने 12 फरवरी, 2004 को नौकरी के लिए आवेदन किया था, तो उसके खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज या लंबित नहीं था। हालांकि, आवेदन जमा करने के पांच दिन बाद, वह एक आपराधिक मामले में फंस गया, जिसमें उसे सितंबर 2004 में निचली अदालत ने बरी कर दिया था।
न्यायमूर्तियों जे के माहेश्वरी और के वी विश्वनाथन की पीठ ने गुरुवार को दिए अपने फैसले में कहा, “हर गैर-खुलासे को अयोग्यता के रूप में खारिज करना अन्यायपूर्ण होगा और यह इस महान, विशाल और विविध देश में मौजूद जमीनी हकीकतों से पूरी तरह बेखबर होने के समान होगा।”
आगे के फैसले के प्रमुख बिंदु:
- अदालत ने माना कि आवेदन के समय कोई मामला नहीं था, इसलिए नैतिक कर्तव्य का उल्लंघन नहीं हुआ।
- अदालत ने कहा कि नियुक्ति के लिए किसी भी बाद में दर्ज मामले का विचार नहीं किया जा सकता।
- अदालत ने स्वीकार किया कि जानकारी छिपाने में भले ही कुछ गलती हो, लेकिन इससे चयन समाप्त करने का निर्णय अत्यधिक कठोर था।
यह फैसला उन लोगों के लिए राहत की खबर है, जिन्होंने प्रतियोगी परीक्षाओं या भर्तियों के दौरान अनजाने में कुछ जानकारी छिपा दी थी। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह फैसला विशिष्ट परिस्थितियों के आधार पर दिया गया है और यह हर मामले पर लागू नहीं होगा।