Sunday, June 15, 2025
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अब एक साल उत्तराखंड में रहने वाला व्यक्ति होगा उत्तराखंड का निवासी?

देहरादून – उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता और उत्तर प्रदेश की मीडिया प्रभारी गरिमा मेहरा दसौनी ने प्रदेश की धामी सरकार पर समान नागरिक संहिता की आड़ में उत्तराखंडियों के साथ बड़ा छलावा करने का आरोप लगाया है। दसौनी ने कहा कि यह पहली बार नहीं है कि भाजपा सरकार के मुख्य मंत्रियों ने उत्तराखंड के सीने पर घाव देने का काम किया हो, इससे पहले भी 2018 में तत्कालीन पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भू कानून में संशोधन कर उत्तराखंड की जमीन बाहरी लोगों और भू माफिया के लिए गिरवी रख दी। दसौनी ने कहा की पूर्व वर्ती सरकारों में बाहरी व्यक्ति केवल उत्तराखंड में 200 वर्ग मीटर से ज्यादा की जमीन नहीं खरीद सकता था परंतु त्रिवेंद्र रावत ने भू कानून में बड़ा संशोधन करते हुए इस नियम को खत्म कर दिया और उत्तराखंड की भूमि गिद्धों के सामने नोचने के लिए छोड़ दी। दूसरा कुठारा घात धामी सरकार में नियम 143( ए )लैंड यूज में बदलाव करके किया गया।

दसौनी ने कहा कि पूर्ववर्ती सरकारों में यदि सरकार द्वारा किसी व्यक्ति या संस्था को किसी विशेष प्रयोजन के लिए भूमि आवंटित होती थी और उस पर निश्चित समय सीमा के अंदर उद्योग या संस्थान लगाना अनिवार्य था और ऐसा नहीं होने पर वह भूमि राज्य सरकार में निहित हो जाया करती थी परंतु धामी सरकार ने लैंड यूज में बदलाव करते हुए वह प्रावधान ही समाप्त कर दिया गया यानी की यदि किसी ने अस्पताल या दवा कारखाना या विद्यालय खोलने के लिए सरकार से भूमि ली और वहां वनंतरा जैसा रिजॉर्ट खोल दे तो उस पर ना कोई करवाही होगी और ना ही उस भूमि को सरकार द्वारा वापस लेने का प्रावधान होगा।


दसौनी ने कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस वार्ता कर बताया की उत्तराखंड के जनमानस पर एक और वज्रपात करते हुए धामी सरकार ने समान नागरिक संहिता में निवासी की जो परिभाषा दी है उसमें उन्होंने उत्तराखंड में मात्र एक साल से अधिक समय से रहने वाले व्यक्ति को यहां का निवासी मान लिया है ।दसौनी ने कहा कि उत्तराखंड की जनता आज सशक्त भू कानून और मूल निवास की मांग पर अडिग है। ऐसे में समान नागरिक संहिता जो कि अब एक कानून बन चुका है उसमें इस तरह का प्रावधान उत्तराखंड के लोगों के साथ एक बड़ा धोखा है और भारतीय जनता पार्टी की सरकारों की मंशा को उजागर करता है। दसोनी ने कहा कि पूर्व में भी यही देखने में आया है कि भारतीय जनता पार्टी से संबंधित एक संगठन विशेष के लोगों को भारी संख्या में उत्तराखंड की नौकरियों में नियुक्तियां दे दी गई, फिर चाहे वह आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय हो या मुक्त विश्वविद्यालय वहां संगठन विशेष के गैर उत्तराखंडी मूल के लोग भारी संख्या में पाए जा सकते हैं। दसौनी ने कहा कि अव्वल तो धामी सरकार द्वारा लाया गया समान नागरिक संहिता संविधान के अनुच्छेद 14 और 44 का सीधा-सीधा उल्लंघन है जो समान अधिकार की बात करता है। आज धामी सरकार द्वारा उत्तराखंड पर यूसीसी थोप देने के बाद उत्तराखंड बाकी देशवासियों से अलग-थलग हो गया है यही नहीं उत्तराखंड में भी यह पंडोरा बॉक्स आधी अधूरी आबादी पर ही लागू होगा जो इसकी मूल भावना को ही समाप्त कर देता है। दसौनी ने कहा की निवासी की जो परिभाषा समान नागरिक संहिता के ड्राफ्ट में अंकित की गई है उससे उत्तराखंड के जनमानस में बेहद आक्रोश और ऊहा पोह की स्थिति है।

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