खेल किसी भी राष्ट्र की शान होते हैं, जहां जुनून और मेहनत से तराशे गए खिलाड़ी न सिर्फ गौरव बढ़ाते हैं, बल्कि लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा बनते हैं। मगर दुख की बात है, कई बार राजनीति का गंदा खेल इस पवित्र क्षेत्र को दागदार बना देता है, जिसके नतीजे झेलने पड़ते हैं प्रतिभावान खिलाड़ियों को। हाल के दिनों में भारतीय खेल जगत ऐसे ही उदाहरणों से तिलमिला उठा है, जहां आरोप लग रहे हैं कि राजनीति ने खिलाड़ियों के हितों को दबाकर अपनी स्वार्थ साधने का हथकंडा अपनाया है।

हाल ही में सामने आए बृजभूषण सिंह मामले को ही लें।

कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष और भाजपा सांसद पर कई महिला पहलवानों द्वारा यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए गए।

दुख की बात है कि इस मामले में केंद्र सरकार की भूमिका निराशाजनक रही है।

आरोपों की गंभीरता के बावजूद सरकार अपनी आंखें मूंदे हुए प्रतीत होती है, ना तो पीड़ित पहलवानों की सुनवाई हो रही है और ना ही आरोपों की निष्पक्ष जांच का कोई ठोस प्रयास दिख रहा है।

ये अकेला मामला नहीं है, जो दिखाता है कि कैसे राजनीति भारतीय खेलों की राह में रोड़ा बनती है।

2016 में बर्फी आचार्या यौन उत्पीड़न मामले को लें, जहां लापरवाही और राजनीतिक रस्साकशी के चलते पीड़िता को न्याय मिलने में कई साल लग गए। या फिर 2012 ओलंपिक के पदक विजेताओं को दी गई इनाम राशि पर विवाद को याद करें, जहां सरकार की उदासीनता के चलते खिलाड़ियों को हतोत्साहित होना पड़ा।

ऐसे उदाहरण गवाह हैं कि राजनीति का खेल भारतीय खिलाड़ियों की मेहनत को किस तरह कुचल देता है।

जब खेलों में ही राजनीति हावी हो, तो न तो प्रतिभा परवान चढ़ पाती है और न ही देश को अंतरराष्ट्रीय मंच पर शान हासिल करने का सपना साकार हो पाता है।

अब सवाल यह उठता है कि यह सब क्यों हो रहा है?

एक बड़ा कारण है प्रशासनिक पदों पर अयोग्य राजनीतिक नियुक्तियां।

ऐसे नेता, जिन्हें खेलों का अ, ब, स तक नहीं पता, नीतिगत निर्णय लेते हैं और खिलाड़ियों की जरूरतों की अनदेखी करते हैं। दूसरी तरफ, चयन प्रक्रिया में भी अक्सर पक्षपात और राजनीतिक दबाव की बातें सामने आती हैं, जिससे हताशा और असंतोष का माहौल बनता है।

तो ऐसे में रास्ता क्या है?

सबसे पहला कदम राजनीति को खेलों से दूर रखना है।

खेल संघों को स्वायत्तता देनी होगी और चयन प्रक्रिया को पूरी तरह से पारदर्शी बनाना होगा। साथ ही, सरकार को चाहिए कि आरोपों की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करे और खिलाड़ियों के हितों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाए।

यह कहना सही होगा कि भारतीय खेलों का भविष्य हमारे हाथों में है।

अब समय है कि हम खिलाड़ियों के जुनून और मेहनत का सम्मान करें, राजनीति के दखल को रोकें और एक ऐसा माहौल बनाएं जहां केवल योग्यता और प्रतिभा को ही महत्व दिया जाए। तभी हमारा खेल जगत विश्वपटल पर नया इतिहास रच सकेगा और युवाओं के सपनों को उड़ान भरने के लिए मजबूत पंख दे सकेगा।

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