
कानपुर: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर में एक पीएचडी छात्रा के आत्महत्या करने से सनसनी फैल गई है। यह एक महीने में इस तरह की तीसरी घटना है, जिसने संस्थान में छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर गंभीर चिंता जताई है।
मृतका की पहचान [छात्रा का नाम] के रूप में हुई है। वह [विषय] विभाग में पीएचडी कर रही थीं। गुरुवार सुबह उनके हॉस्टल के कमरे में उन्हें फंदे से लटका पाया गया। पुलिस मामले की जांच कर रही है, लेकिन आत्महत्या के कारणों का अभी तक पता नहीं चल पाया है।
आईआईटी कानपुर में पिछले एक महीने में आत्महत्या की यह तीसरी घटना है। इससे पहले सितंबर में एक बीटेक छात्र और अक्टूबर में एक अन्य पीएचडी छात्र ने आत्महत्या कर ली थी। लगातार हो रही इन घटनाओं से संस्थान के प्रबंधन और छात्र समुदाय में चिंता का माहौल है।
छात्रों का कहना है कि अकादमिक दबाव, प्रतियोगिता का माहौल और व्यक्तिगत समस्याएं छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही हैं। कई छात्रों ने संस्थान में परामर्श सेवाओं की कमी की भी शिकायत की है।
आईआईटी कानपुर के निदेशक, प्रोफेसर अभय करंदीकर ने एक बयान में कहा कि वह इस घटना से बेहद दुखी हैं और उन्होंने मामले की पूरी तरह से जांच के आदेश दिए हैं। उन्होंने छात्रों को किसी भी समस्या के लिए आगे आने और संस्थान की परामर्श सेवाओं का लाभ उठाने का आग्रह किया है।
मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत
आईआईटी कानपुर की घटना यह दर्शाती है कि देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में भी छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत है। अकादमिक दबाव, प्रतियोगिता और व्यक्तिगत समस्याओं से निपटने के लिए छात्रों को आवश्यक सहायता और मार्गदर्शन प्रदान करना महत्वपूर्ण है।
संस्थानों को परामर्श सेवाओं को मजबूत करने, छात्रों के बीच जागरूकता बढ़ाने और तनाव प्रबंधन तकनीकों को सिखाने जैसे कदम उठाने चाहिए। साथ ही, परिवारों और समाज को भी छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील होने और उन्हें सहारा देने की आवश्यकता है।
हमें यह याद रखना चाहिए कि मानसिक स्वास्थ्य उतना ही महत्वपूर्ण है जितना शारीरिक स्वास्थ्य। हमें छात्रों को यह महसूस कराने की जरूरत है कि वे अकेले नहीं हैं और किसी भी समस्या से निपटने के लिए उनकी मदद की जाएगी।