एक चौंकाने वाले आंकड़े के अनुसार, भारत के शीर्ष 1% धनाढ्य लोगों की राष्ट्रीय आय में हिस्सेदारी अब ब्रिटिश राज से भी ज्यादा हो गई है। वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब (World Inequality Lab) के अनुसार, 2022-23 में, भारत के शीर्ष 1% लोगों की आय राष्ट्रीय आय का 22.6% थी।
आजादी के बाद से यह असमानता लगातार बढ़ती गई है। 1951 में, शीर्ष 1% लोगों की हिस्सेदारी केवल 11.5% थी, जो 1990 के दशक के उदारीकरण के बाद तेजी से बढ़ी।
यह असमानता इस बात की ओर इशारा करती है कि आर्थिक विकास का लाभ सभी वर्गों तक समान रूप से नहीं पहुंच रहा है। शीर्ष 1% धनाढ्यों की आय में भारी बढ़ोतरी के बावजूद, देश के अधिकांश लोगों की आय में बहुत कम वृद्धि हुई है।
2022-23 में, शीर्ष 1% लोगों की औसत वार्षिक आय ₹53 लाख थी, जो औसत भारतीय की आय ₹2.3 लाख से 23 गुना अधिक है। वहीं, निचले 50% लोगों की औसत आय ₹71,000 और मध्यम वर्ग के 40% लोगों की औसत आय ₹1.65 लाख रही।
इस असमानता को कम करने के लिए सरकार को क्या कदम उठा सकती है, इस पर बहस छिड़ गई है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि प्रगतिशील कराधान (progressive taxation) और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों (social welfare programs) में वृद्धि से गरीबों और मध्यम वर्ग को राहत मिल सकती है।
आने वाले समय में यह देखना होगा कि सरकार इस ज्वलंत मुद्दे को कैसे संबोधित करती है।