भारत के सर्वोच्च न्यायालय के एक ऐतिहासिक फैसले में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है। यह फैसला पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन से लड़ने के प्रयासों के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।
क्या है फैसला?
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और लेसर फ्लोरिकन जैसे पक्षियों के संरक्षण से संबंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया। फैसले में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से सुरक्षा का अधिकार संविधान में निहित जीवन के अधिकार और समानता के अधिकार से जुड़ा हुआ है।
फैसले का महत्व
यह फैसला महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत सरकार को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए मजबूत कदम उठाने के लिए बाध्य करता है। अब, जलवायु परिवर्तन के कारण पर्यावरण को होने वाले नुकसान के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
सरकार की भूमिका
इस फैसले के बाद अब केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी बढ़ गई है। सरकार को जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए ठोस नीतियां बनानी होंगी और प्रदूषण फैलाने वाली गतिविधियों को नियंत्रित करना होगा। साथ ही, जलवायु परिवर्तन से प्रभावित लोगों को राहत और पुनर्वास मुहैया कराना भी सरकार की जिम्मेदारी बनती है।
भविष्य की राह
यह फैसला पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में एक सकारात्मक कदम है। यह न सिर्फ सरकार बल्कि आम जनता को भी पर्यावरण के प्रति सजग रहने और जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए मिलकर काम करने के लिए प्रेरित करेगा।