बच्चों के लिए लोकप्रिय खाद्य ब्रांड, सेरेलैक को बनाने वाली कंपनी नेस्ले भारत में माता-पिता के गुस्से का सामना कर रही है। कंपनी पर आरोप है कि वह अपने बेबी फूड उत्पादों में अनुशंसित से अधिक मात्रा में चीनी मिला रही है।

चीनी की मात्रा पर चिंता
चिंताओं का विषय है कि नेस्ले के सेरेलैक उत्पादों में चीनी की मात्रा बाल रोग विशेषज्ञों द्वारा बताई गई स्वस्थ सीमा से अधिक है। माता-पिता का कहना है कि लेबल पर चीनी की मात्रा को स्पष्ट रूप से नहीं दर्शाया गया है, जो भ्रामक हो सकता है। चीनी सेवन को बचपन के मोटापे और मधुमेह जैसी स्वास्थ्य समस्याओं से जोड़ा गया है, जिससे माता-पिता और भी ज्यादा चिंतित हो गए हैं।
नेस्ले का जवाब
नेस्ले ने इन आरोपों का जवाब देते हुए कहा है कि उनके उत्पाद लेबलिंग विनियमों का पालन करते हैं और चीनी की मात्रा स्पष्ट रूप से बताई गई है। कंपनी ने यह भी दावा किया है कि उनके उत्पादों में добавित चीनी की मात्रा न्यूनतम है और प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाली शर्करा से अधिक नहीं है।
विशेषज्ञों की राय
हालांकि, बाल रोग विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी प्रकार की अतिरिक्त चीनी शिशुओं के लिए हानिकारक हो सकती है। उनका सुझाव है कि 6 महीने से कम उम्र के बच्चों को केवल स्तन दूध या फॉर्मूला दूध ही दिया जाना चाहिए और 2 साल से कम उम्र के बच्चों को जितना हो सके कम चीनी का सेवन करना चाहिए।
माता-पिता की मांग
गुस्साए माता-पिता ने नेस्ले से अपने उत्पादों में चीनी की मात्रा कम करने और लेबलिंग को अधिक पारदर्शी बनाने की मांग की है। कुछ माता-पिता ने सोशल मीडिया पर भी अपना असंतोष व्यक्त किया है।
सरकारी जांच की संभावना
इस मामले ने भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) का ध्यान भी खींचा है। एफएसएसएआई जांच कर सकता है कि नेस्ले के उत्पाद लेबलिंग विनियमों का पालन करते हैं या नहीं और चीनी की मात्रा स्वीकार्य सीमा के भीतर है या नहीं।
यह विवाद शिशु आहार उत्पादों में चीनी की मात्रा को विनियमित करने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालता है। माता-पिता अपने बच्चों को क्या खिलाते हैं, इस पर अधिक जागरूक हो रहे हैं, और वे यह सुनिharapkan रखते हैं कि खाद्य कंपनियां पारदर्शी तरीके से काम करेंगी और अपने उत्पादों में पोषण संबंधी जानकारी को स्पष्ट रूप से बताएंगी।