हरिद्वार, 25 नवंबर: उत्तराखंड में स्थायी मूल निवास-1950 और सशक्त भू-कानून लागू करने की मांग को लेकर आज हरिद्वार में हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर उतरे। ऋषिकुल से हर की पैड़ी तक निकाली गई स्वाभिमान रैली में लोगों ने जोरदार प्रदर्शन किया।
भूख हड़ताल का ऐलान: रैली को संबोधित करते हुए संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने घोषणा की कि अपनी मांगों को मनवाने के लिए 26 नवंबर से ऋषिकेश में त्रिवेणी घाट पर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू की जाएगी। उन्होंने कहा कि जब तक सरकार सशक्त भू-कानून लागू नहीं करती, तब तक यह हड़ताल जारी रहेगी।
प्रदर्शनकारियों के नारे: रैली में शामिल लोगों ने “सुन ले दिल्ली देहरादून, हमे चाहिए भू कानून”, “गुड़, गन्ना, गंगा को बचाना है, मजबूत भू कानून लाना है”, “जल, जंगल, जमीन हमारी, नहीं चलेगी, धौंस तुम्हारी” जैसे जोशीले नारे लगाए।
मूल निवासियों की चिंताएं: मोहित डिमरी ने कहा कि उत्तराखंड के मूल निवासी अपनी जमीन, जल और जंगल पर बाहरी लोगों के कब्जे से परेशान हैं। उन्होंने कहा कि राज्य के संसाधनों की लूट हो रही है और भावी पीढ़ी का भविष्य अंधकारमय हो रहा है।
फर्जी निवास प्रमाण पत्र: डिमरी ने कहा कि बाहरी लोग फर्जी निवास प्रमाण पत्र बनाकर मूल निवासियों के हकों पर डाका डाल रहे हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में मूल निवासियों को अपनी ही पहचान के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
किसानों की समस्याएं: मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति के सह संयोजक लुशुन टोडरिया ने कहा कि उत्तराखंड के किसान अपनी जमीन गंवा रहे हैं और बाहरी लोग उनकी जमीनें सस्ते दामों में खरीद रहे हैं।
रोजगार का संकट: समिति के सचिव प्रांजल नौडियाल ने कहा कि उत्तराखंड के युवाओं को राज्य के कारखानों में रोजगार नहीं मिल पा रहा है।
विभिन्न संगठनों का समर्थन: इस रैली को पहाड़ी महासभा, उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तराखंड चिन्हित राज्य आंदोलनकारी संघर्ष समिति, कुमाऊँनी एकता परिषद, व्यापार मंडल, किसान यूनियन, पूर्व सैनिक संगठन आदि कई संगठनों ने समर्थन दिया।
महिलाओं और युवाओं की सक्रिय भागीदारी: रैली में बड़ी संख्या में महिलाओं और युवाओं ने भी हिस्सा लिया। उन्होंने उत्तराखंड की परंपरागत वेशभूषा में नृत्य किया और जोशीले नारे लगाए।
मांगें: प्रदर्शनकारियों ने सरकार से स्थायी मूल निवास-1950 लागू करने और सशक्त भू-कानून बनाने की मांग की है।
यह रिपोर्ट उत्तराखंड में मूल निवास और भू-कानून को लेकर चल रहे आंदोलन की गंभीरता को दर्शाती है।