देहरादून, 27 नवंबर: उत्तराखंड राज्य महिला आयोग ने आज बाल विवाह जैसी कुप्रथा को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया है। आयोग के कार्यालय में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में आयोग की अध्यक्ष कुसुम कंडवाल ने सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को बाल विवाह के खिलाफ शपथ दिलाई।
कंडवाल ने कहा कि बाल विवाह बच्चों के बचपन का अभिशाप है और यह एक दंडनीय अपराध है। उन्होंने कहा, “ऐसा कोई भी व्यक्ति जो बाल विवाह करवाता है या इसमें शामिल होता है, उसे कानून के अनुसार सजा दी जाएगी।”
आयोग की अध्यक्ष ने कहा कि बाल विवाह से बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो जाता है। उन्हें शिक्षा से वंचित रखा जाता है और उनके स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि समाज को मिलकर बाल विवाह जैसी कुप्रथा को समाप्त करने के लिए आगे आना होगा।
आयोग के सभी अधिकारियों और कर्मचारियों ने शपथ ली कि वे बाल विवाह को रोकने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वे लोगों को बाल विवाह के दुष्परिणामों के बारे में जागरूक करेंगे।
इस मौके पर आयोग की सदस्य सचिव उर्वशी चौहान, विधि अधिकारी दयाराम सिंह और अन्य अधिकारी मौजूद रहे।
बाल विवाह क्या है?
बाल विवाह का मतलब है कि लड़का या लड़की या दोनों विवाह के लिए कानूनी उम्र से कम उम्र में विवाह कर लें। भारत में लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़कों के लिए 21 वर्ष है।
बाल विवाह क्यों होता है?
बाल विवाह के कई कारण हैं, जैसे कि:
- सामाजिक दबाव
- गरीबी
- अशिक्षा
- लिंग भेदभाव
- धार्मिक रीति-रिवाज
बाल विवाह के दुष्परिणाम
बाल विवाह के कई दुष्परिणाम होते हैं, जैसे कि:
- बच्चों का स्वास्थ्य खराब होना
- शिक्षा से वंचित रह जाना
- कुपोषण
- गरीबी
- घरेलू हिंसा
- कम उम्र में मां बनना
बाल विवाह को कैसे रोका जा सकता है?
बाल विवाह को रोकने के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं, जैसे कि:
- लोगों को बाल विवाह के दुष्परिणामों के बारे में जागरूक करना
- लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देना
- गरीबी को कम करना
- कानून को सख्त बनाना
- समाज में लिंग समानता लाना