चंपावत:
उत्तराखंड के आदर्श जिला चंपावत के सीमांत क्षेत्र में सड़क की गंभीर कमी का खामियाजा एक बुजुर्ग को अपनी जान देकर भुगतना पड़ा। पाटी ब्लॉक के खेरकुड़ा गांव में रहने वाले 67 वर्षीय त्रिलोक चंद्र जोशी की तबियत अचानक बिगड़ी। उनके घर तक कोई सड़क न होने के कारण ग्रामीणों को उन्हें खेरकुड़ा तोक से लगभग 10 किलोमीटर दूर डोली के सहारे रमक तक लाना पड़ा।
इस यात्रा में 4 घंटे से अधिक समय लगा, जिसके कारण बुजुर्ग की तबियत और बिगड़ गई। जब उन्हें रमक से वाहन के द्वारा चंपावत जिला अस्पताल ले जाने की कोशिश की गई, तो रास्ते में ही उन्होंने दम तोड़ दिया।
ग्रामीणों ने कहा कि यदि गांव तक सड़क होती तो समय पर बुजुर्ग को अस्पताल पहुंचाया जा सकता था, जिससे उनकी जान बच सकती थी। भुवन चंद्र, नीलांबर अटवाल, नरेश चंद्र, परमानंद, गिरीश जोशी, पानदेव जोशी, मंगल जोशी आदि ग्रामीणों का कहना है कि आजादी के 76 वर्षों बाद भी उनके गांव तक सड़क नहीं पहुंच पाई है।
ग्रामीणों ने कई बार सड़क बनाने की मांग शासन-प्रशासन से की, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। उन्होंने कहा कि सड़क की कमी के कारण उन्हें रोजाना मरीजों, गर्भवती महिलाओं और अन्य लोगों को खतरनाक रास्तों से डोली के सहारे 10 किलोमीटर दूर अस्पताल पहुंचाना पड़ता है।
ग्रामीणों का कहना है कि सड़क की कमी के कारण गांवों से पलायन हो रहा है और इस आदर्श जिला चंपावत में यह स्थिति अत्यंत शर्मनाक है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री अजय टम्टा से उन्होंने मांग की है कि उनके गांव तक सड़क बनाई जाए, ताकि इस प्रकार की घटनाओं से बचा जा सके।
यह पहली बार नहीं है कि सड़क की कमी के कारण किसी की जान गई हो। पिछले वर्ष भी आदर्श जिला चंपावत के बाराकोट ब्लॉक के सील गांव के एक बच्चे की डोली से अस्पताल लाने के दौरान मौत हो गई थी। मुख्यमंत्री की घोषणा के बावजूद आज तक सील गांव में सड़क नहीं बनाई गई।
ग्रामीणों ने कहा कि यदि मुख्यमंत्री चंपावत को आदर्श जिला बनाना चाहते हैं, तो पहले गांवों की मूलभूत सुविधाओं, जैसे सड़क, को पूरा करें और पलायन को रोकने के प्रयास करें।