
कोटद्वार | 30 मई 2025
गढ़वाल के बहुचर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड में कोटद्वार की विशेष अदालत द्वारा दोषियों को सुनाई गई उम्रकैद की सजा के विरोध में शुक्रवार को उत्तराखंड स्वाभिमान मोर्चा ने जोरदार प्रदर्शन किया।
मोर्चा के अध्यक्ष बॉबी पंवार, उपाध्यक्ष त्रिभुवन चौहान, और अन्य सदस्यों ने कोटद्वार न्यायालय परिसर के बाहर भारी पुलिस सुरक्षा और बैरिकेडिंग के बावजूद विरोध दर्ज कराया। कोर्ट में सुनवाई के दौरान मोर्चा के कार्यकर्ता पुलिस घेरे को तोड़ते हुए बैरिकेडिंग पार कर गए और दोषियों को फांसी देने की मांग को लेकर नारेबाजी की।
प्रदर्शनकारियों में बॉबी पंवार, त्रिभुवन चौहान, दिनेश चंद मास्टर, संजय सिलस्वाल, विकास रयाल, हिमांशु रावत, कुसुम जोशी, मनोज कोठियाल, प्रमोद काला सहित कई सदस्य शामिल थे। पुलिस द्वारा रोके जाने पर कार्यकर्ताओं और सुरक्षाबलों के बीच बहस और तीखी नोंकझोंक भी हुई।
“यह न्याय नहीं, एक राजनीतिक समझौता है” — बॉबी पंवार
सजा सुनाए जाने के बाद मोर्चा अध्यक्ष बॉबी पंवार ने अदालत के फैसले को “राजनीतिक षड्यंत्र” करार देते हुए कहा, “यह उम्रकैद की सजा दोषियों को बचाने का प्रयास है। आखिर वह VIP कौन है, जिसका नाम तक सामने नहीं आ पाया?” उन्होंने चेतावनी दी कि जब तक दोषियों को फांसी नहीं मिलती और VIP का नाम उजागर नहीं होता, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।
“यह सजा उस बेटी की कीमत नहीं हो सकती” — त्रिभुवन चौहान
मोर्चा के उपाध्यक्ष त्रिभुवन चौहान ने कहा, “पूरे देश की निगाहें इस केस पर थीं। यह फैसला समाज के भरोसे को तोड़ता है। एक मासूम बेटी की नृशंस हत्या के बदले सिर्फ उम्रकैद? क्या यही न्याय है?”
मुख्यमंत्री का पुतला फूंका, सरकार पर आरोप
फैसले के विरोध में प्रदर्शनकारियों ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का पुतला फूंका और सरकार पर आरोप लगाया कि उसने मामले में ढिलाई बरती और दोषियों को बचाने का प्रयास किया। मोर्चा ने चेतावनी दी कि यदि सरकार इस फैसले पर पुनर्विचार नहीं करती तो पूरे प्रदेश में उग्र आंदोलन होगा।
बॉबी पंवार और त्रिभुवन चौहान ने कहा, “आज हमने मुख्यमंत्री का पुतला फूंका है, कल यह आंदोलन विधानसभा की चौखट तक पहुंचेगा।”
स्वाभिमान मोर्चा का ऐलान: न्याय नहीं मिला तो सड़कों से विधानसभाओं तक संघर्ष*
उत्तराखंड स्वाभिमान मोर्चा ने स्पष्ट कर दिया है कि वह तब तक नहीं रुकेगा जब तक अंकिता को न्याय नहीं मिलेगा। मोर्चा ने सरकार को चेताया कि यदि जनभावनाओं का सम्मान नहीं हुआ, तो जनता सड़कों पर उतरकर जवाब देगी।
यह मामला अब सिर्फ एक अदालत के फैसले का नहीं, बल्कि जनता के विश्वास और न्याय व्यवस्था की साख का बन गया है।
