
उत्तराखण्ड़ को देवभूमि कहा जाता है, और यहां के हर मन्दिर की अपनी विशेषता और अपनी एक अलग पहचान भी है। आज हम उत्तराखण्ड़ के प्रसिद्व मन्दिर धारी देवी की बात करेंगे। जिसे उत्तराखण्ड़ की रक्षक देवी भी माना जाता है, धारी देवी मन्दिर उत्तराखण्ड़ के श्रीनगर गढ़वाल से लगभग 15 किलोमीटर दूर अलकनंदा नदी के बीच एक ऊँचे शिलाखंड पर स्थित मन्दिर है। कहा जाता है, कि बहुत समय पहले अलकनंदा नदी में आई भीषण बाढ़ से देवी की मूर्ति बहकर यहाँ पहुँची। तभी गाँव की एक महिला को दिव्य स्वर सुनाई दिया, कि मुझे इस स्थान पर स्थापित करो….. ये सुनकर गाँववालों ने मूर्ति को नदी के बीच स्थित चट्टान पर स्थापित किया। लेकिन यहाँ माता की केवल ऊपरी देह स्थापित हुई, जबकि निचला भाग आज भी कालीमठ में पूजा जाता है। धारी देवी मन्दिर की मान्यता है, कि माता का स्वरूप दिन में तीन बार बदलता है- सुबह बालिका, दोपहर में युवती और रात को वृद्धा का रूप। इसी कारण धारी देवी मां को जाग्रत देवी भी माना जाता है। यह भी माना जाता है, कि मां धारी उत्तराखण्ड़ की रक्षा करती है, यहां तक कि जब साल 2013 में मन्दिर को विस्थापित किया गया था, तो उत्तराखण्ड़ को केदारनाथ में आयी बाढ़ का सामना करना पड़ा था। आज भी धारी देवी मंदिर आस्था और विश्वास का अद्भुत प्रतीक है। कहा जाता है – जो सच्चे मन से माता का आशीर्वाद माँगता है, उसकी सभी बाधाएँ दूर हो जाती हैं। ।।
जय माता दी।।

