
देहरादून। उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) के युवा प्रकोष्ठ के केंद्रीय अध्यक्ष आशीष नेगी ने उत्तराखंड को “पहाड़ और मैदान” में बांटने की बहस पर अपनी कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने इस तरह के विभाजन को राज्य आंदोलन की मूल भावना के साथ विश्वासघात बताया। नेगी के अनुसार, उत्तराखंड की असली पहचान इसके पहाड़ों, संस्कृति और मूल निवासियों से है, और इसे अलग-अलग हिस्सों में बाँटने की कोशिश दुर्भाग्यपूर्ण है।
नेगी ने याद दिलाया कि उत्तराखंड को पहले केदारखंड और मानसखंड के नाम से जाना जाता था, और यहाँ की विशिष्ट भाषा, बोली और रहन-सहन ने इसे हमेशा एक अलग पहचान दी है। जब यह क्षेत्र उत्तर प्रदेश का हिस्सा था, तो बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। इसी वजह से एक अलग राज्य की मांग उठी और उत्तराखंड आंदोलन शुरू हुआ, जिसमें कई लोगों ने अपनी जान की बाजी लगा दी।
उन्होंने सवाल उठाया कि जब राज्य की नींव ही एक पर्वतीय क्षेत्र के रूप में रखी गई थी, तो मैदान बनाम पहाड़ की बहस कहाँ से आई? नेगी का मानना है कि इस तरह का विभाजन वे लोग फैला रहे हैं, जिनकी नज़र उत्तराखंड की प्राकृतिक संपदा और यहाँ के मूल निवासियों के अधिकारों पर है।
नेगी ने यह भी स्पष्ट किया कि “पहाड़ी” शब्द का मतलब सिर्फ गढ़वाली, कुमाऊनी या जौनसारी तक सीमित नहीं है। उनके अनुसार, “जय पहाड़, जय पहाड़ी” का नारा नीति माणा से लेकर नारसन तक रहने वाले सभी मूल निवासियों के लिए है। उनका कहना है कि चाहे किसी का धर्म, समुदाय या परंपरा कुछ भी हो, अगर वह उत्तराखंड का मूल निवासी है, तो वह पहाड़ी है।
नेगी ने राष्ट्रीय दलों पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि जो दल उत्तराखंड का विकास नहीं चाहते और यहाँ के संसाधनों का शोषण करना चाहते हैं, वही मैदानवाद का अपवाद फैला रहे हैं। उनका मकसद लोगों को बांटकर जनता का ध्यान असली मुद्दों से भटकाना है।
आशीष नेगी ने साफ किया कि उत्तराखंड के मूल निवासी, चाहे वे किसी भी क्षेत्र के हों, अपनी पहचान सबसे पहले एक “पहाड़ी” के रूप में करते हैं। उन्होंने कहा कि “जय पहाड़, जय पहाड़ी” का नारा पूरे उत्तराखंड की एकता और अस्तित्व का प्रतीक है।
नेगी ने अंत में कहा कि जो लोग उत्तराखंड को बांटने की कोशिश कर रहे हैं, वे इस राज्य की आत्मा को नहीं समझ पाए हैं। यह राज्य पहाड़ों का है और यहाँ का हर निवासी पहाड़ी है।

