
देहरादून, 30 अक्टूबर 2025 —
आईसीएआर–भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान (ICAR–IISWC), देहरादून द्वारा जिले के रायपुर ब्लॉक के किसानों को दो नई विकसित गेहूँ की किस्में — डीबीडब्ल्यू 371 (DBW 371) और डीबीडब्ल्यू 372 (DBW 372) — वितरित की गईं। ये किस्में आईसीएआर–भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान (ICAR–IIWBR), करनाल, हरियाणा द्वारा विकसित की गई हैं और उत्तर भारत के लिए अनुशंसित हैं।
यह वितरण किसान प्रथम परियोजना (Farmers FIRST Project – FFP) के तहत किया गया, जिसमें लगभग 50 किसानों को प्रत्येक को 20 किलोग्राम ट्रुथफुल लेबल (TL) बीज परीक्षण के रूप में प्रदान किए गए।
परियोजना के प्रमुख अन्वेषक एवं प्रधान वैज्ञानिक डॉ. बांके बिहारी ने बताया कि इन किस्मों में उच्च आनुवंशिक क्षमता, अधिक उत्पादन, बेहतर पोषक गुणवत्ता, रोग प्रतिरोधकता और कम गिरने (lodging) की प्रवृत्ति जैसी विशेषताएँ हैं। उन्होंने कहा कि मैदानी क्षेत्रों में इन किस्मों से 75–85 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा देहरादून क्षेत्र में 40–50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज संभव है, जबकि पारंपरिक किस्मों से केवल 15–18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है।
इन किस्मों से अनाज के बराबर मात्रा में भूसा भी प्राप्त होता है, जो पशुपालन के लिए उपयोगी है।

प्रधान वैज्ञानिक डॉ. एम. मुरुगानंदम ने गुणवत्तापूर्ण बीज और कृषि इनपुट्स के महत्व पर बल देते हुए किसानों को सलाह दी कि वे अपनी फसल से अगली बुवाई के लिए बीज सुरक्षित रखें, क्योंकि ये किस्में सामान्य बाजार में आसानी से उपलब्ध नहीं हैं।
वहीं, वैज्ञानिक डॉ. अभिमन्यु झाझरिया ने बताया कि इन नई किस्मों को अपनाने से किसानों की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति में सुधार होगा और उनकी आय में वृद्धि होगी।
कार्यक्रम के दौरान किसानों को अधिकतम उत्पादन के लिए अनुशंसित कृषि तकनीकी पैकेज (Package of Practices) की जानकारी दी गई।
उन्हें सलाह दी गई कि वे —
- बुवाई से पहले बीजों को फफूंदनाशी दवा से उपचारित करें,
- 30 अक्टूबर से 20 नवम्बर 2025 के बीच बुवाई करें,
- बुवाई के लगभग 35 दिन बाद पहली सिंचाई करें,
- पहली सिंचाई के बाद गुड़ाई/निराई या खरपतवार नाशी (sulfosulfuron) का प्रयोग करें,
- पूरे फसल चक्र में 5–6 सिंचाईयाँ करें (कम से कम 3–4 आवश्यक)।

प्रत्येक किसान के साथ व्यक्तिगत समझौता (MoU) भी किया गया, ताकि बीजों का वैध उपयोग और खरीद-फरोख्त व्यवस्था (Buy-back arrangement) सुनिश्चित की जा सके।
संस्थान के वैज्ञानिकों ने बताया कि पिछले तीन वर्षों में वितरित की गई अन्य उन्नत गेहूँ किस्में जैसे PBW 343, DBW 222, DBW 303, DBW 187, VL 967 और VL 953 पहले से क्षेत्र में सफलतापूर्वक स्थापित हो चुकी हैं, जिससे 80% बीज प्रतिस्थापन दर प्राप्त हुई है।
किसानों ने नई किस्मों के प्रति गहरी रुचि दिखाई और आईआईएसडब्ल्यूसी के वैज्ञानिकों द्वारा स्थानीय कृषि उत्पादन में सुधार के प्रयासों की सराहना की।
इस अवसर पर श्री कुशल पाल सिंह (FPO कोटिमाचक), तथा संस्थान के परियोजना कार्मिक श्री मलिक और श्री विकास कुमार भी उपस्थित रहे।


