नीति आयोग, भारत सरकार का एक प्रमुख थिंक टैंक, हाल ही में देश में गरीबी के स्तर को लेकर चर्चा का विषय बना हुआ है। आयोग का दावा है कि भारत में गरीबी का स्तर अब 5% से नीचे आ गया है। हालांकि, इस दावे पर कई विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों ने सवाल उठाए हैं।

नीति आयोग का दावा:
आयोग का कहना है कि उन्होंने 2011-12 के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) के आंकड़ों और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में हुए बदलाव को ध्यान में रखते हुए गरीबी रेखा को समायोजित किया है। इसके अनुसार, देश की सबसे निचली आय वाले 0-5% लोगों की औसत खपत अब गरीबी रेखा से अधिक हो गई है।
विशेषज्ञों की शंकाएं:
हालांकि, कई विशेषज्ञों का मानना है कि नीति आयोग का दावा हकीकत से मेल नहीं खाता। उनका कहना है कि गरीबी का आकलन केवल आय या खपत के आधार पर नहीं किया जा सकता। इसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास जैसी सुविधाओं तक पहुंच और सामाजिक आर्थिक असमानता जैसे कारकों को भी ध्यान में रखना जरूरी है।
विचारणीय बिंदु:
- आंकड़ों की विधि: कई विशेषज्ञ एनएसएसओ के आंकड़ों की विधि पर सवाल उठाते हैं, यह कहते हुए कि ये आंकड़े ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में गरीबी के असमान वितरण को ठीक से नहीं दर्शाते।
- महंगाई का दौर: भारत में लगातार बढ़ती महंगाई के कारण लोगों की खरीद क्षमता कम हो रही है। गरीबी रेखा का समायोजन इस तथ्य को नजरअंदाज करता है।
- आर्थिक असमानता: गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या कम होने के बावजूद आर्थिक असमानता बढ़ रही है, जो गंभीर चिंता का विषय है।
निष्कर्ष:
नीति आयोग का दावा कि भारत में गरीबी का स्तर 5% से नीचे आ गया है, बहस का विषय बना हुआ है। विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब देना और गरीबी के बहुआयामी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए गरीबी रेखा का निर्धारण करना महत्वपूर्ण है।
तभी हम गरीबी उन्मूलन के लक्ष्य की वास्तविक प्रगति का आकलन कर पाएंगे।