देहरादून।
भाजपा प्रदेशाध्यक्ष और राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट ने चिपको आंदोलन की प्रेरणा स्रोत एवं पर्यावरण संरक्षण की प्रतीक गौरा देवी को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित करने की मांग की है। उन्होंने उच्च सदन में पारंपरिक गढ़वाली स्वर — “चिपका डाल्थु पर न कंटण दय्वा, पहाड़ों की सम्पत्ति अब न लूटण दय्वा” — के साथ चमोली की इस वीर महिला के योगदान को स्मरण कराया।
शीतकालीन सत्र के दौरान उन्होंने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि देवभूमि उत्तराखंड की मातृशक्ति द्वारा प्रकृति व वन संपदा को बचाने की ऐतिहासिक पहल को देश के सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि रेणी गांव (विकासखंड जोशीमठ) की ग्रामीण महिला गौरा देवी ने 26 मार्च 1970 को पेड़ों की कटाई के विरोध में महिलाओं को संगठित कर चिपको आंदोलन की शुरुआत की थी।
ठेकेदारों द्वारा जंगलों की कटाई के लिए मजदूर भेजे जाने पर गौरा देवी के नेतृत्व में महिलाओं ने वृक्षों से स्वयं को चिपका लिया और कहा —
“पेड़ों को काटने से पहले हमें काटो।”
इस आंदोलन की गूंज न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में सुनाई दी। यह देश में पर्यावरण संरक्षण को जन-आंदोलन का रूप देने वाला ऐतिहासिक क्षण था। इसके बाद यह मुहिम हिमाचल, कर्नाटक, राजस्थान और बिहार तक फैल गई। आंदोलन का प्रभाव इतना व्यापक था कि तत्कालीन केंद्र सरकार ने हिमालयी राज्यों में 15 वर्ष तक पेड़ों की कटाई पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया।
महेंद्र भट्ट ने कहा कि चिपको आंदोलन सिर्फ विरोध नहीं, बल्कि संघर्ष और संवेदनशीलता की ऐसी कहानी है जिसने जंगलों के महत्व को दुनिया के सामने एक गीत की तरह व्यक्त किया। गौरा देवी का यह योगदान आने वाली पीढ़ियों को सदैव प्रेरित करता रहेगा।

