
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान झारखंड में एक बड़ा राजनीतिक दांव चलते हुए, अगर आगामी लोकसभा चुनावों में इंडिया ब्लॉक जीत हासिल करता है, तो राष्ट्रव्यापी जातिगत जनगणना कराने और आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा हटाने का वादा किया। इससे राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है।
उन्होंने अपने सम्बोधन में कहा, “हम पिछड़े वर्गों को उनका हक दिलाएंगे। पूरे देश में जातिगत जनगणना कराई जाएगी और आरक्षण की मौजूदा 50 प्रतिशत की सीमा को खत्म कर दिया जाएगा।” उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सिर्फ वोट बटोरने के लिए पिछड़े वर्गों को अपना बताती है, जबकि असल में उनके कल्याण में कोई दिलचस्पी नहीं है।
यह घोषणा कई कारणों से महत्वपूर्ण है:
- जातिगत जनगणना का मुद्दा: जातिगत जनगणना लंबे समय से विवादित मुद्दा रहा है। समर्थक तर्क देते हैं कि इससे सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समुदायों की बेहतर समझ विकसित करने में मदद मिलेगी, जबकि विरोधी इससे जातिगत विभाजन बढ़ने का खतरा जताते हैं।
- आरक्षण की सीमा का विवाद: वर्तमान में सभी श्रेणियों को मिलाकर आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत है। कुछ का मानना है कि इस सीमा को हटा देना चाहिए, जबकि अन्य इससे सामाजिक न्याय को बाधित होने का डर रखते हैं।
- चुनावी रणनीति: यह कदम आगामी लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और इंडिया ब्लॉक के लिए वोट जुटाने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। पिछड़े वर्गों का एक बड़ा जनाधार खींचने की कोशिश है।
हालांकि, राहुल गांधी के इस वादे पर कई सवाल भी उठ रहे हैं:
- वैधानिक चुनौतियां: आरक्षण की सीमा को हटाना संविधान में संशोधन के बिना संभव नहीं है, जो आसान नहीं होगा।
- सामाजिक प्रभाव: कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से सामाजिक तनाव और जातिगत राजनीति को बढ़ावा मिल सकता है।
- चुनावी लाभ: यह देखना बाकी है कि क्या यह वादा वास्तव में वोटों में तब्दील हो पाएगा।
इस घोषणा के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं और यह आने वाले दिनों में भारतीय राजनीति में चर्चा का विषय बनी रहने की संभावना है।