सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र दाभोलकर की हत्या मामले में एक विशेष अदालत ने आज अहम फैसला सुनाया। अदालत ने दो लोगों को दोषी ठहराते हुए उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई है, जबकि तीन अन्य आरोपियों को बरी कर दिया गया है।
नरेंद्र दाभोलकर, जो अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के संस्थापक थे, की अगस्त 2013 में पुणे में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा की गई थी।
अदालत ने सचिन आंदुरे और शरद काळस्के को हत्या और साजिश रचने का दोषी पाया है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, ये दोनों वही लोग हैं जिन्होंने दाभोलकर की गोली मारकर हत्या की थी। उन्हें पांच लाख रुपये के जुर्माने के साथ आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है।
हालांकि, अदालत ने तीन अन्य आरोपियों – डॉ. वीरेंद्र सिंह ताडे (ENT सर्जन), संजीव पुणालेकर और विक्रम भावे को बरी कर दिया। बचाव पक्ष के वकील ने सबूतों की कमी का हवाला देते हुए उनके खिलाफ लगे आरोपों को खारिज करने की मांग की थी।
इस फैसले का दाभोलकर के परिवार और उनके समर्थकों ने स्वागत किया है, लेकिन साथ ही उन्होंने तीन अन्य आरोपियों को बरी किए जाने पर भी सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि सीबीआई को मामले की गहन जांच करनी चाहिए थी और सभी दोषियों को सजा दिलाई जानी चाहिए।
नरेंद्र दाभोलकर की हत्या देशभर के सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए एक बड़ा झटका थी। इस मामले का फैसला न केवल दाभोलकर के परिवार के लिए बल्कि सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए भी महत्वपूर्ण है।