
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बड़ा चुनावी दांव चलते हुए पूरे देश में जाति जनगणना कराने का वादा किया है। उन्होंने कहा कि अगर उनकी पार्टी अगले आम चुनाव में केंद्र में जीत हासिल करती है, तो वह पूरे देश में सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए जाति जनगणना कराएगी। इस ऐलान से देश में सामाजिक और राजनीतिक गलियारों में गरमागर्म बहस छिड़ गई है।
जाति जनगणना: समर्थक और विरोधी
जाति जनगणना के समर्थकों का कहना है कि इससे पिछड़े वर्गों (OBCs), दलितों और आदिवासियों की सही जनसंख्या का पता चलेगा, जिससे उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए ठोस नीतियां बनाई जा सकेंगी। साथ ही, उनका मानना है कि इससे सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी और आरक्षण जैसी योजनाओं को अधिक प्रभावी बनाया जा सकेगा।
हालांकि, जाति जनगणना के विरोधी इसे सामाजिक तनाव बढ़ाने वाला कदम मानते हैं। उनका तर्क है कि इससे जातिवाद को बढ़ावा मिलेगा और सामाजिक सद्भाव बिगड़ सकता है। इसके अलावा, वे डेटा के दुरुपयोग और गोपनीयता भंग की आशंका भी जताते हैं।
सरकार का रुख
वर्तमान सरकार पिछले कुछ वर्षों से जाति जनगणना कराने से बचती रही है। उनका कहना है कि इससे सामाजिक तनाव बढ़ सकता है और जाति आधारित भेदभाव को बढ़ावा मिल सकता है। इसके अलावा, उनका यह भी तर्क है कि सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन का निर्धारण जाति के आधार पर नहीं किया जा सकता।
राहुल गांधी का तर्क
राहुल गांधी ने अपने ऐलान के दौरान कहा कि जाति जनगणना “एक्स-रे” की तरह काम करेगी, जो देश में पिछड़े वर्गों की सही तस्वीर पेश करेगी। उन्होंने कहा कि इससे न केवल उनकी संख्या का पता चलेगा, बल्कि उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति का भी विस्तृत आंकड़ा हासिल होगा। उन्होंने दावा किया कि इससे यह भी पता चलेगा कि देश का फंड किस आधार पर वितरित किया जा रहा है।
आगे क्या?
कांग्रेस के इस ऐलान से आने वाले महीनों में देश में जाति जनगणना पर बहस और तेज होने की संभावना है। यह मुद्दा अगले आम चुनाव में भी प्रमुखता से उठ सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि अन्य राजनीतिक दल इस पर क्या रुख अपनाते हैं और जनता की प्रतिक्रिया कैसी होती है।