दक्षिण भारत इस समय गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) की रिपोर्ट के अनुसार, इस क्षेत्र के जलाशयों में जल का स्तर पिछले 10 सालों में सबसे कम है। रिपोर्ट में बताया गया है कि दक्षिण भारत के राज्यों – आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु – में मौजूद 42 जलाशयों में कुल भंडारण क्षमता का केवल 17 प्रतिशत पानी ही बचा है।
यह कमी चिंताजनक है क्योंकि गर्मी का मौसम अभी शुरू ही हुआ है और पानी की मांग लगातार बढ़ती जाएगी। विशेषज्ञों का कहना है कि कमजोर मानसून और भूजल स्तर में लगातार गिरावट इस संकट के मुख्य कारण हैं। कमजोर मानसून के कारण जलाशयों में पानी का संग्रह कम हुआ है, वहीं दूसरी ओर भूजल का अत्यधिक दोहन भविष्य के लिए खतरा बन गया है।
जल संकट का सबसे अधिक प्रभाव ग्रामीण इलाकों और शहरों के निवासियों पर पड़ रहा है। कई इलाकों में पेयजल आपूर्ति में कटौती की जा रही है और लोगों को पानी के लिए लंबी लाइनें लगानी पड़ रही हैं। किसानों को भी सिंचाई के लिए पानी की कमी का सामना करना पड़ रहा है, जिससे फसल उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
इस गंभीर स्थिति से निपटने के लिए सरकार को तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। जल संरक्षण के उपायों को सख्ती से लागू करने और भूजल संसाधनों के पुनर्भरण पर ध्यान देने की आवश्यकता है। साथ ही, नदियों को जोड़ने जैसी दीर्घकालिक परियोजनाओं पर भी विचार किया जाना चाहिए।
अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले समय में दक्षिण भारत में जल संकट और भी विकराल रूप धारण कर सकता है। यह न केवल लोगों की आजीविका को प्रभावित करेगा बल्कि सामाजिक अशांति को भी जन्म दे सकता है।