हाल ही में एक हाई कोर्ट के फैसले ने लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर बहस को फिर गरमा दिया है। इस फैसले में कोर्ट ने माना है कि भारत के कुछ समुदायों में लिव-इन रिलेशनशिप को अभी भी एक वर्जित रिश्ता माना जाता है।

यह फैसला उन लोगों के लिए एक तरह का झटका है जो लिव-इन रिलेशनशिप को अपनाते हैं। हालांकि, यह ध्यान रखना जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कई मामलों में लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी रूप से मान्यता दे चुका है।
इस विवाद की असली वजह पर गौर करें तो, पारंपरिक मूल्यों और आधुनिकता के बीच टकराव सामने आता है। भारतीय समाज में शादी को एक पवित्र बंधन माना जाता रहा है। वहीं, दूसरी तरफ समाज में बदलाव हो रहा है, लोग आजादी और स्वतंत्रता के साथ रहना पसंद कर रहे हैं। ऐसे में लिव-इन रिलेशनशिप उनके लिए एक विकल्प बनकर उभरा है।
लेकिन, यह फैसला सामाजिक स्वीकृति की कमी को भी रेखांकित करता है। कई लोगों को अभी भी लगता है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले कपल्स सिर्फ शादी टालने का नाटक कर रहे हैं। ऐसे रिश्तों को सामाजिक स्वीकृति मिलने में अभी वक्त लग सकता है।
कोर्ट के इस फैसले को लेकर विशेषज्ञों की राय भी बंटी हुई है। कुछ का मानना है कि यह फैसला पिछड़ेपन को दर्शाता है, वहीं कुछ का कहना है कि यह जमीनी हकीकत को रेखांकित करता है।
समाज के बदलते स्वरूप को देखते हुए यह बहस जरूरी है। हालांकि, यह भी सच है कि लिव-इन रिलेशनशिप चुनने वाले जोड़ों को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कानूनी अधिकारों से लेकर सामाजिक स्वीकृति तक, उन्हें कई लड़ाइयां लड़नी पड़ती हैं।
इस पूरे मामले का निष्कर्ष यही है कि भारत एक विविधताओं से भरपूर देश है। यहां हर तरह के विचार और रहन-सहन का तरीका मौजूद है। लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर बहस इसी विविधता का एक हिस्सा है।